कृष्ण-गोपी प्रेम-ब्रज की याद
सञ्जीवनी - सर्ग : कृष्ण-गोपी प्रेम ब्रज की याद -------------------------------------------------------------------------------- आज याद कर रहे कृष्ण राधे तुमने ही सब कारज साधे बन कर मेरी अद्भुत शक्ति भर दी मेरे मन में भक्ति हर स्वास में नाम ही तेरा है इसमें न कोई बस मेरा है बस सोच रहे कान्हा मन में जब रहते थे वृंदावन में क्या करते थे माखन चोरी और ग्वालों संग जोरा-ज़ोरी क्या अद्भुत ही था वह स्वाद मुझे आता है बार-बार वह याद अब हूँ मैं मथुरा का नरेश पर मन में तो इच्छा अब भी शेष वह दही छाछ माखन चोरी और माँ जसुदा की वो लोरी वो गोपियों का माँ को उलाहना और नंद- बाबा का संभालना वो खेल जो यमुना के तीरे करते थे हम धीरे- धीरे वो मधुवन और वो कुंज गली जहाँ गोपियाँ थी दही लेके चलीं वो मटकी उनसे छीन लेना और सारा दही गिरा देना वो गोपियों का माँ से लड़ना माँ का मुझ पर गुस्सा करना तोड़ के मटकी भाग जाना और इधर-उधर ही छुप जाना कभी पेड़ों पे चढ़ना वन में कभी जल-क्रीड़ा यमुना जल में कभी हँसना तो कभी हँसाना कभी रूठना, कभी मनाना चुपके से निधिवन में जाना गोपियों के संग रास रचाना गाय चराने वन को जाना और मीठी सी ...