भूमिका

दो-शब्द:-भाषा भावों की वाहिका होती है। अपनी काव्य पुस्तक "सञ्जीवनी" में भाषा के माध्यम से एक लघु प्रयास किया है उन भावों को व्यक्त करने का जो कभी हमें खुशी प्रदान करते हैं, तो कभी ग़म। कभी हमें सोचने पर मजबूर कर देते हैं और हम अपने आप को असहाय सा महसूस करते हैं। सञ्जीवनी तीन काव्य-खण्डों का समूह है - 1.ब्रजबाला , 2.कृष्ण-सुदामा ,3.कृष्ण- गोपी प्रेम प्रथम खण्ड-काव्य "ब्रजबाला" मे श्री-राधा-कृष्ण के अमर प्रेम और श्री राधा जी की पीडा को व्यक्त करने का, दूसरे खण्ड-काव्य "कृष्ण-सुदामा" मे श्री-कृष्ण और सुदामा की मैत्री मे सुखद मिलन तथा तीसरे खण्ड-काव्य "कृष्ण - गोपी प्रेम" में श्री कृष्ण और गोपियों के प्रेम के को समझने का अति-लघु प्रयास किया है। साहित्य-कुंज मे यह ई-पुस्तक प्रकाशित है आशा करती हूँ पाठकों को मेरा यह लघु प्रयास अवश्य पसंद आएगा। — सीमा सचदेव

मंगलवार, 13 जनवरी 2009

ब्रजबाला-4. देव स्तुति

संजीवनी के प्रथम खण्ड ब्रजबाला के इस चौथे भाग मे देवों द्वारा श्री राधा जी की स्तुति की गई है जब राधा जी श्री कृष्ण जी के मथुरा जाने की बात सुन कर क्रोधित हो उठती है तो देव श्री कृष्ण स्तुति कर श्री राधा जी को शान्त करने की प्रार्थना करते हैं

देव स्तुति


जय कृष्ण कृष्ण जय जय गोपाल
जय गिरधारी जय नंदलाल
जय कृष्ण कन्हैया मुरलीधर
जय राधा वल्लभ जय नटवर
जै बंसी बजैया मन मोहन
हम आए हैं तेरी शरणम
जय जय गोविंद जय जय गोपाल
जै रास रचैया दीन दयाल
जय जय माधव जय मुरलीधर
हम आए तेरे दर नटवर
जय रसिकेश्वर जै जै घनश्याम
हे मन भावन हे सुंदर श्याम
जय ब्रजेश्वर जय जय गिरधर
किरपा करो वृंदावनेश्वर
जय जय माधव जय मधुसूदन
जय दामोदर जय पुरुषोत्तम
जय नारायण जय वासुदेव
जय विश्व रूप जय जय केशव
जय सत्य हरी जय नारायण
जय विष्णु केशव जनार्दन
जय कृष्ण कन्हैया दीं दयाल
जय मुरली मनोहर जय गोपाल
जन जीवन का उद्धार करो
सब कष्ट हरो सब कष्ट हरो
धरती को पाप मुक्त करने
आए दुखियों के कष्ट हरने
करें हाथ जोरि कर निवेदन
राधा का कोप न बने विघ्न


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