कृष्ण - सुदामा (खण्ड - २)

कृष्ण - सुदामा (खण्ड - २)


हर्षित है उसका मन ऐसे
मिल गया हो नव जीवन जैसे
जैसे ही दामा ने कदम बढ़ाया
कृष्ण को भी वो याद था आया
बोले रुक्मणी से तब कृष्णा
याद आ रहा मुझे सुदामा
गुरुकुल के हम ऐसे बिछुड़े
और फिर अब हम कभी न मिले
कृष्ण ऐसे बतियाते जाते
दामा की बात बताते जाते
हँस देते कभी अनायास ही
और कभी भावुक हो जाते
रुक्मणी भी सुनकर हुई मग्न
भावुक हो गया उसका भी मन
क्या दोनों ही दोस्त सच्चे
पर तब थे दोनों ही बच्चे

इधर रास्ते पे चलते-चलते
याद कृष्ण को करते-करते
चल रहा था दामा मस्त हुए
लिए चने जो पत्नी ने थे दिए
जाकर के कृष्ण को दे देना
और सीधे-सीधे कह देना
मजबूर है आज उसकी भाभी
कुछ और नहीं वो दे सकती
सुदामा मन में विचार करे
श्री कृष्ण की ही पुकार करे
वह बन गया है द्वारिकाधीश
क्या मुझे पहचानेगा जगदीश
बस सोच-सोच चलता जाता
और आगे ही बढ़ता जाता
वह है राजा और मैं हूँ दीन
वो दिन नहीं जब खाते थे छीन
मेरे पास तो ऐसे वस्त्र नहीं
और ऐसा भी कोई अस्त्र नहीं
जिससे मैं राजा से मिल पाऊँ
मैं कौन हूँ ऐसा बतलाऊँ ?
क्यों कृष्ण उसे पहचानेगा?
क्यों दोस्त उसको मानेगा?
वह तो अब भूल गया होगा
गुरुकुल उसे याद कहाँ होगा?
वह बहुत बड़ा मैं बहुत छोटा
वह हीरा है मैं सिक्का खोटा
मैं पापी हूँ वह है जागपालक
वह सारे जाग का है मालिक
वह नहीं मुझे दोस्त मानेगा
और नहीं मुझे पहचानेगा
जब वह उसे दोस्त बताएगा
तो कृष्ण का सिर झुक जाएगा
वह दोस्त को नहीं झुका सकता
नहीं शर्मिंदा उसे कर सकता
जो कृष्ण का सिर झुक जाएगा
सुदामा नहीं वह सह पाएगा
दूजे ही पल सोचे दामा
नहीं ऐसा दोस्त है कृष्णा
वह तो इक सच्चा दोस्त है
बस मेरा ही मन विचलित है
मुझे याद है उसकी वो हर बात
हर पल दिया उसने मेरा साथ
वह खुद तकलीफ़ उठाता था
पर हर पल मुझे बचाता था
मेरी हर ग़लती को माफ़ किया
और हर पल दिल को साफ किया
ऐसा प्यारा वह दोस्त कृष्ण
फिर भी विचलित है मेरा मन?
वह कितना बड़ा बन गया राजा
झुकती है उसके सम्मुख परजा
उसमें तो अहम् आ गया होगा
सब कुछ ही भूल गया होगा
दामा के मन में है दुविधा
कान्हा को नहीं होगी सुविधा
उसे देख के होगा शर्मिंदा
और उसका तो कपड़ा भी है गंदा
अब दामा ने मन में विचार किया
और मन ही मन ये धार लिया
अब नहीं द्वारिका जाएगा
और नहीं कृष्ण को झुकाएगा
यह सोच के वापिस कदम किया
और ठोकर खा के गिर ही गया
गिरते ही उसने खोया होश
और खो दी सारी समझ-सोच

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टिप्पणियाँ

Divya Narmada ने कहा…
मित्र वही जो साथ दे,
सारी सीमा तोड़.
सिद्ध किया श्री कृष्ण ने,
पल में पद-मद छोड़.
निबल सुदामा का किया,
सर्वाधिक सत्कार.
द्रुपद द्रोण से पर नहीं,
निभा सके निज प्यार.
नष्ट द्रोण हो गए पर,
अजर-अमर हैं कृष्ण.
'सलिल' मित्रता निभाना,
सीख- न रह संतृष्ण .
-sanjivsalil.blogspot.com
-divyanarmada.blogspot.com

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